बसपा राजनीति का बीजेपीकरण हो गया है, वक्त रहते सामाजिक आंदोलन बचाने की चुनौती



आज डॉ. उदित राज (पूर्व सांसद) , राष्ट्रीय चेयरमैन, दलित, ओबीसी, माइनॉरिटी एवं आदिवासी परिसंघ (डोमा परिसंघ), ने स्टेट गेस्ट हाउस, मीरा बाई मार्ग, लखनऊ में आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि 1980 के दशक के बाद उत्तर प्रदेश में कांशीराम जी ने बहुजन जागृति की शुरुवात की जो 2000 के दशक में चरम पर पहुँचा। भले ही आंदोलन की परिणिति राजनीति में हुई हो लेकिन सोच और आधार सामाजिक न्याय ही रहा है। दूसरे राजनैतिक दल राजनीति से ही शुरू करते हैं उसी से अंत हो जाता है, लेकिन बहुजन समाज पार्टी के साथ ऐसा नहीं रहा। सुश्री मायावती के दुर्व्यहार, भ्रष्टाचार, लालच और कार्यकर्ताओं से दूरी बनाने के बावजूद बसपा की राजनैतिक ताकत लंबे समय तक टिकी रही। सुश्री मायावती की क्रूरता और निकम्मेपन के बावजूद कार्यकर्ता और वोटर जंग करता रहा। कार्यकर्ताओं के घर बिक गए, उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखायी नहीं हो पायी और उनके साथ क्रूरता का व्यवहार हुआ फिर भी वह बहुजन राज लाने के लिए संघर्षरत रहा। बची-खुची ताक़त की सौदेबाजी चलती रहती है। लाखों फुले, शाहू, अंबेडकर को मानने वाले कार्यकर्ता निराशा के दौर से गुजर रहे हैं। कुछ ने अपने स्तर पर छोटे-छोटे संगठन खड़े कर लिए हैं लेकिन इनकी सोच मरी नहीं है। पूरी तरह से सोच मर जाए और लोग बिखर जायें, उससे पहले दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज एवं आदिवासी संगठनों का परिसंघ (डोमा परिसंघ) मैदान में है। इसके संरक्षक - जस्टिस सभाजीत यादव (पूर्व न्यायाधीश इलाहाबाद हाई कोर्ट) और सह संरक्षक - श्री नारायण सिंह पटेल (अध्यक्ष, किसान-मजदूर मंच) हैं।इसका प्रथम प्रदेश स्तरीय सम्मेलन कल सहकारिता भवन, लखनऊ में संपन्न हुआ। कांशी राम जी के पुराने साथी जैसे - श्री राज बहादुर (पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री - बसपा), डॉ. मसूद अहमद (पूर्व शिक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार) सहित तमाम लोग एकजुट हुए और प्रतिज्ञा लिया कि फिर से बहुजन आंदोलन पुनर्जीवित और खड़ा किया जाए।

कभी जो दलितों के बुरे हालात होते थे आज उसी दौर से मुस्लिम समाज गुज़र रहा है। मुस्लिम समाज अकेले परिस्थिति से नहीं लड़ सकता। दलित भी अकेले सक्षम नहीं है। जब भी मुस्लिम समाज अपनी समस्या को उठाता है उसकी परिणिति सांप्रदायिकता में तब्दील कर दी जाती है। गत 1 दिसंबर 2024 को डोमा परिसंघ की प्रथम रैली दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई, जिसमे वक़्फ़ बोर्ड बचाने की मांग प्रमुखता से उठी।

डॉ. अंबेडकर और सामाजिक न्याय का सिद्धांत शब्दों और भाषणों तक ज़्यादा सीमित रहा नहीं तो इतनी दुर्गति न होती। डॉ. अंबेडकर पूरे जीवन संघर्ष करते रहे, फिर भी हिंदू धर्म में कोई सुधार नहीं हुआ। डॉ. उदित राज जी ने आवाहन किया कि तथाकथित अंबेडकरवादी जाति तक तो तोड़ नहीं पाए कम से कम जातिवाद और जातीय संगठन से बाज आओ। कब तक ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के खिलाफ बोलकर लोगों को इकट्ठा करते रहोगे। आज की जरूरत है कि अपने में परिवर्तन करो। मुसलमान के खिलाफ बोलकर हिंदुओं को एकजुट किया जाता है और सवर्ण की आलोचना करके दलितों और पिछड़ों को, इस मार्ग पर चलना छोड़ दो। भगवान गौतम बुद्ध ने कहा था - अत्त दीपो भव। इसका आशय है कि ख़ुद की सोच बदलो। दलित-पिछड़े चाहते हैं कि सवर्ण स्वयं तो बदले लेकिन ये ख़ुद में जात-पाँत करते रहें।

अब तक जो बहुजन के संगठन बने वे व्यक्ति और जाति आधारित रहे। कहने को आबादी 85% है लेकिन संगठन के अंदर ऊपर से लेकर नीचे तक क्या सभी वर्गों की हिस्सेदारी होती है? संगठन चलाने वाले ख़ुद की जाति के लोगों और अपने दोस्तों को अहम पदों पर बैठा देते हैं और कहते हैं कि बहुजनों का कल्याण कर रहे हैं। डोमा परिसंघ की संगठन की संरचना में चारों - एक दलित, एक ओबीसी, एक मुस्लिम और एक आदिवासी का हर स्तर पर होना अनिवार्य होगा। नाम से ही बहुजन नहीं बल्कि करके दिखाना होगा। इस प्रथम बैठक में छः संभागीय सम्मेलन, झांसी, बांदा, श्रावस्ती कानपुर, मेरठ और आजमगढ़, जो उत्तर प्रदेश के प्रमुख केंद्र है, में किए जाने का फैसला लिया गया है।

(अशोक सिंह)
निवर्तमान प्रदेश प्रवक्ता
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी
9999912435

(विजय बहादुर यादव)
कार्यकारी अध्यक्ष, डोमा परिसंघ
मो. 6386-968356

(सी. एल. मौर्य)
निजी सचिव, माननीय डॉ. उदित राज
9899766882