माइनॉरिटीज और आदिवासी (डोमा) परिसंघ द्वारा जंतर मंतर, नई दिल्ली पर अमित शाह द्वारा बाबा साहब, डॉ. बी. आर. अंबेडकर का संसद के पटल पर अपमान किए जाने के विरोध में प्रदर्शन
आज दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज और आदिवासी (डोमा) परिसंघ द्वारा जंतर मंतर, नई दिल्ली पर अमित शाह द्वारा बाबा साहब, डॉ. बी. आर. अंबेडकर का सांसद के पटल पर अपमान किए जाने के विरोध में प्रदर्शन का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में डोमा परिसंघ के पदाधिकारी और कार्यकर्ता शामिल हुए। प्रदर्शन में अमित शाह का पुतला फूंकने की कोशिश की गई, लेकिन पुलिस ने भारी बल प्रयोग करके आग बुझा दी और पुतला छीन लिया गया।
डॉ. उदित राज, राष्ट्रीय चेयरमैन, दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज और आदिवासी (डोमा) परिसंघ, ने प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कहा कि गृह मंत्री, अमित शाह द्वारा बाबा साहब, डॉ. बी. आर. अंबेडकर का संसद के पटल पर अपमान देश बर्दाश्त नहीं करेगा। अमित शाह ने आवेश या भावनात्मक बात यह नहीं कही है, बल्कि इसके पीछे वर्षों की घृणा प्रकट हुई है। 12 दिसंबर 1949 में आर.एस.एस. और हिन्दू महासभा ने डॉ. अंबेडकर का पुतला और संविधान की प्रति जलायी थी।
उन्होंने आगे कहा कि बीते दिनों संसद में नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, निर्मला सीतारमन आदि ने पहले संवैधानिक संशोधन की निंदा की है। वर्षों की घृणा फिर से उभरी है। यह संवैधानिक संशोधन जमींदारी उन्मूलन और दलितों को आरक्षण देने के लिए किया गया था। अमित शाह द्वारा घृणित बयान इसलिए आया कि पहला संवैधानिक संशोधन दलितों, आदिवासियों और गरीबों के लिए किया गया था। जमींदारी उन्मूलन न होता तो भूमिहीन दलितों, आदिवासियों और गरीबों को जमीन नहीं मिल पाती, यही इनकी घृणा का मुख्य कारण है।
राहुल गांधी जी लगातार जाति जनगणना की बात उठा रहे हैं और भाजपा तरह-तरह के अड़ंगे लगाकर जनगणना नहीं कराना चाहती। जब तक जाति जनगणना नहीं होती तब तक पिछड़ों का उद्धार हो ही नहीं सकता। जाति जनगणना न हो उसके लिए कभी मुस्लिम आरक्षण का विवाद पैदा कर देते हैं तो कभी संभल में हिन्दू-मुस्लिम दंगा। पी.एम. मोदी सीधे जाति जनगणना का विरोध कर नहीं सकते इसलिए तमाम बहाने करते रहते हैं।
2014 से लगातार आरक्षण खत्म करते आ रहे हैं। सरकारी नौकरियों में भर्तियाँ लगभग बंद कर दिया है। जब इससे भी आरक्षण नहीं खत्म हुआ तो लेटरल एंट्री का माध्यम खोजा। जिसमें एस.सी, एस.टी. और ओबीसी का पूरा रास्ता बंद कर दिया। एयर पोर्ट, पोर्ट, पीएसयू सभी अदानी और बड़े पूँजीपतियों के हाथों बेंचकर आरक्षण खत्म करने का षड्यन्त्र करते ही रहे हैं। आउटसोर्सिंग और ठेकेदारी प्रथा के माध्यम से भी आरक्षण खत्म किया। इन सबको देखते हुए, क्या कोई शंका रह जाती है कि जो घृणा अमित शाह ने व्यक्त किया, वह दिल की बात जुबां पर आ गई है।
400 पार का नारा अगर साकार हो गया होता तो अब तक ये शायद संविधान को बदल चुके होते। एक राष्ट्र – एक चुनाव संविधान को कमजोर करने का षड्यन्त्र ही है। नेहरू गांधी जी से इसलिए घृणा करते हैं कि उन्होंने बाबा साहब डॉ. अंबेडकर को संविधान निर्मात्री समिति का अध्यक्ष बनने का मौका दिया। यहीं पर नहीं रुके बल्कि उनको देश का कानून मंत्री बनाया। इन्हें तिरंगा झण्डा से भी घृणा थी और सत्ता प्राप्ति के लिए गिरगिट की तरह रंग तो बदल लेते हैं लेकिन कभी दिल की बात जुबां पर आ ही जाती है। सावरकर इनके पूजनीय इसलिए हैं कि वे संविधान के स्थान पर मानुस्मृति लागू करना चाहते थे।
प्रदर्शन में डोमा परिसंघ के राष्ट्रीय महासचिव, एड. शाहिद अली एवं रवि महिंद्रा, राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर – एड. सतीश सांसी, ओबीसी नेता – राम सागर यादव, ओम प्रकाश निषाद, आदि दर्जनों साथियों के साथ भाग लिए।
सी. एल. मौर्य
निजी सचिव
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